Posts

Showing posts from June, 2020

निगाहें मुहब्बत

Image
हजारों बार कोशिश कर चुका हूँ नहीं  छुपती  निगाहें मुहब्बत मुहब्बत

इश्क़ क्या बला है

Image
क्या बला इश्क़ है, जीती हूँ तो बदनाम हूँ मैं और मरती हूँ तो शोख़ की रुसवाई है

जुल्फ

Image
बिखेर दे जो जुल्फों को अपने मुखड़े पर तो मारे शर्म के आई  हुई घटा फिर जाए

दिल की बस्ती

Image
दिल वो नगर नहीं जो फिर आबाद हो सके पछताओगे, सुनो तो, ये बस्ती उजाड़ के

इश्क़

Image
इश्क़ करता है तो फिर इश्क़ की तौहीन न कर या तो बेहोश न हो, हो तो फिर होश में ना आ. 

जख्म लाखों हैं और दिल अकेला

Image
अर्श पर जैसे तारे बहुत हैं मेरे दिल शरारे बहुत हैं जख्म लाखों हैं और दिल अकेला जैसे इक चान्द तारे बहुत हैं आंसुओं से सजी हैं दुकानें शहर में गम के मारे बहुत हैं ये अजब महफिले दोस्तां है इसमें दुश्मन हमारे बहुत हैं उनको भी जीतने की हवस थी हम भी दानिस्ता हारे बहुत हैं उंगलियों पर मैं कैसे गिनाऊँ मुझपे अहसां तुम्हारे बहुत हैं साथ कोई देता नहीं है और बजाहिर सहारे बहुत हैं दो बदन चान्दनी रंग खुशबू सोचिए इस्तिआरे बहुत हैं हम सरापा खुलूसो वफ़ा हैं फिर भी दुश्मन हमारे बहुत हैं

रुसवा उसके नाम पे होने चली

हर खुशी की बात पर रोने चली रख कर सर पत्थर पे मैं सोने चली दे दिया क्यों मैंने उसको अपना दिल जान  भी  उसके  लिए  खोने  चली दर्द  ऐसा  है  कि  जाता  ही  नहीं आंसूओ से जख्म को धोने धोने चली तोड़ भी नहीं सकती नहीं हूँ जिसका फल ऐसे  पौधों  को  मैं  क्यों  बोने  चली जाने क्या देखा है उसमें ऐ रहगुज़र रुसवा उसके नाम पर होने चली

मिर्जा गालिब

तुम जानो तुमको गैर से जो रस्मो राह हो मुझको भी पुछते रहो तो क्या गुनाह हो बचते नहीं मुआखजा-ए-रोजे हश्र से कातिल अगर रकीब है तो तुम गवाह हो उभरा हुआ नकाब में है उनके एक तार मरता हूँ मैं कि ये न किसी की निगाह हो जब मैकदा छुटा तो फिर अब क्या जगह की कैद मस्जिद हो मदरसा हो कोई खानकाह हो सुनते हैं जो बहिश्त की तारीफ सब दुरुस्त लेकिन खुदा करे वो तेरी जलवागाह हो 'गालिब'भी गर न हो तो कुछ ऐसा जररूर नहीं दुनिया हो या रब और मेरा बादशाह हो

मिर्जा गालिब

तुम जानो तुमको गैर से जो रस्मो राह हो मुझको भी पुछते रहो तो क्या गुनाह हो बचते नहीं मुआखजा-ए-रोजे हश्र से कातिल अगर रकीब है तो तुम गवाह हो उभरा हुआ नकाब में है उनके एक तार मरता हूँ मैं कि ये न किसी की निगाह हो जब मैकदा छुटा तो फिर अब क्या जगह की कैद मस्जिद हो मदरसा हो कोई खानकाह हो सुनते हैं जो बहिश्त की तारीफ सब दुरुस्त लेकिन खुदा करे वो तेरी जलवागाह हो 'गालिब'भी गर न हो तो कुछ ऐसा जररूर नहीं दुनिया हो या रब और मेरा बादशाह हो

कभी तो आओगे

कभी तो आओगे किसी दिन ,जब मेरी आंखें भींगी होंगी आवाज जब गले का साथ छोड़ देगी बदन बेजान हो जाएगा गेसूएं की घटा छिन हो जाएगी कलेजा छलनी हो चुका होगा तब शायद हाँ तब शायद आओगे ....... लेकिन तब तुम आओगे ही क्यों मुझे मरते देखने?  मेरी लाश को आग लगाने मुझे मुक्त करने या खुद मुक्त होने तुम निश्चिन्त रहो  मैंने तुम्हे मुक्त किया सारे बंधनों से मुझे खाक में मिलाने से भी  हाँ तुम्हे मुक्त किया अब मत आना कभी नहीं

अरमां लिए जिंदगी रह गई

एक हसरत थी दिल में छुपी रह गई कितने अरमां लिए जिंदगी रह गई बेबसी में सितम मुझपे ऐसा हुआ आसमां छिन बस जमीं रह गई गो समन्दर के सीने में थे ं गोताजन फिर भी कैसी ये तशना लबी रह गई टूटा हुआ साजे दिल तो बयां यूँ हुआ  मेरे नगमों में अब आजिजी रह गई मुझको कब रास आयीं ये खुशीयां बस अधूरी सी ये जिन्दगी रह गई

जिंदगी एक आजमाइश है

जिंदगी तू तो आजमाइश है तुझसे अपनी भी एक ख्वाहिश है बुझा रहें हैं चराग़ उल्फत के ये सब अहले वतन की साजिश है घर में खुशियाँ जो रक्स करती हैं मेरे परवर की सब नवाजिश है और रुसवा न अब करें मुझको आपसे इतनी सी गुजारिश है

राहिल फरीदी

मुद्दतों बाद पढके उसका खत हो गया आंसुओ से गीला खत जाके परदेश भूल मत जाना मुझको ऐ दोस्त लिखते रहना खत इसको पढते ही आंख भर गई आज तुने ये कैसा लिखा खत बाद में पढ़ने के लिए खोला पहले तो देर तक निहारा खत उसने तोहफा ये मांगा मुझसे है तुम मुझे रोज लिखना खत भेजता है मेरे पते पर कौन दोस्तों रोज एक सादा खत दिल परीशां है सुबह से मेरा क्यों नहीं आज उसका आया खत जिसमें तुमने गुलाब भेजा था आज तक है वो महका महका खत मुद्दतों  बाद  याद  आया  मैं मुद्दतों  बाद उसने भेजा  खत

आंखों से

तू हर्फे हम्द को ऐसे संवार आंखों से जहाने हम्द में आए बहार आंखों से दरे खुदा पे नजर ऐसे जज्ब में आए लिखूँ मैं हम्द का इक शाकाहार आंखों में मैं रब तेरे लिए लिखुँ तमाम हम्द तिरी तेरे सिफात का क्या हो शुमार आंखों में लबों पे आए दुआ मुस्तजाब हो जाए तू रब को इश्क़ में ऐसे पुकार आंखों से जो अश्क हो वह उन्हें हम्द में शुमार करें बहें जो रब की मुहब्बत शुआर आंखों से तमाम उम्र खुदा तेरे जिक्र में गुजरे उतर न पाए ये तेरा खुमार आंखों से किसी भी वक्त में रब को न भूलने पाए तू उसको कल्ब में ऐसे उतार आंखों से

तालिब रामपुरी

बात भी नहीं होती, हाथ भी नहीं मिलता उससे हम नहीं मिलतें, जिससे जी नहीं मिलता हां हमें मुहब्बत ने इस कदर नवाजा है अब कोई शिकायत का हर्फ़ भी नहीं मिलता आइना यह कहता है मुखतलीफ हो दुनिया से हम में औरों जैसा क्यों आदमी न नहीं मिलता मुरझाए मुरझाए से फूल जैसे बच्चों को रोटी मिल भी जाए तो दूध घी नहीं मिलता पुरखुलूस लोगों में जा कर बैठते हैं लुफ्त हर जगह तेरा जिन्दगी नहीं मिलता यह सबक है मेहनत से जी चुराने वालों को एक खोटा सिक्का भी पेशगी नहीं मिलता जिनका घर नहीं होता, क्या बताएं वह 'तालिब' अच्छा खाने पीने को वाकई नहीं मिलता

जुदा कर लो राहों से राहें

हमारी दफ्तर में क्या नही है मगर एक जुल्फ का साया नही है जहाँ आसूदा देखी है हमने कोई भी भीड़ में चेहरा नहीं है सफेदी आ गई शामद लहू मे मुझे उसने जो पहचाना नहीं है जुदा कर लो मेरी राहों से राहें मगर ये फैसला अच्छा नहीं है हमारे सर की कीमत लग रही है  भला मशहूर भी होना न नहीं है तुम्हारी याद  क्या आई  सरे शाम हमें अब रात भर सोना नहीं है हमारे हाथ में भी क्या है, बताउ अगर सोंचे तो एक लम्हा नहीं है

मन्ज़िल जरूर मिलेगी

माजी के आईने में जब भी झांक कर देखा मैंने तो हर तरफ तुम्हारा प्यार ही नजर आया और इक हौसला आगे बढने का जो तुमने मुझे दिया था जिसके सहारे मैं हर मुश्किल राह से  हंसकर गुजर जाती हूँ क्योंकि तुम्हारा प्यार आज भी गिरने से पहले ही मुझे थाम लेता है  और मैं   नए हौसले के साथ आगे बढ़ जाती हूँ यह सोचकर कि मन्ज़िल जरूर मिलेगी

तस्वीर दिल में लगाते हुए

एक तस्वीर दिल से लगाते हुए चूमते  हैं  वो  आंसू  बहाते हुए किन ख्यालों में जाने वो खो जाते हैं अपना अफसाना-ए-गम सुनाते हुए सामने एक तस्वीर आ जाती है हाथ रुक जाते हैं खत जलाते हुए मेरे मोहसिन कि हम थक गए हैं बहुत इन वफाओं की लाशें उठाते हुए आज तक दर पे नजरें जमीं हैं मेरी आतें ही होंगे वो गुनगुनाते हुए अब हैं खामोश इतने कि लगता नहीं क्या वही लब हैं ये चहचहाते हुए

ये तुम हो......

ये तुम्हारे गेसूऐं हैं या रात के गहरे सायें हैं.....  ये तुम्हारी काजल है या आसमान में छाएं बादल हैं.....  ये तुमने बिंदी लगाई है या चान्द उतर आया है......  ये तुम्हारे लब हैं या मचलते जाम हैं....  ये तुम्हारी आंखें हैं या सागर है.....  ये तुम्हारे रुखसार हैं या जन्नत....  ये तुम्हारी अदा है या खन्जर ......  बता भी दो की हम कहाँ जाएं......  बता भी दो की हम बर्बाद हो जाएं..... 

तेरा याद आना

आज भी सब्जी जल जाती है मेरी तुझे   याद   कर   के आज भी उल्टे अखबार पढती हूँ तुझे   याद   कर  के आज भी देर तक गलीया़ं निहारती हूँ तुझे   याद  कर   के आज भी दुप्पटा भींग जाता है मेरा तुझे   याद   कर   के आज मुसकुरा लेतीं हूँ तुझे याद कर के आज भी घंटो बैठी रहती, तेरी यादों के सहारे तुझे  याद  कर  के आज भी रातों में नींद उडी रहती है तुझे  कर  याद  के आज भी तुझे ही लिखती रहती हूँ तुझे   याद   कर  के  आज भी चांद देखती रहती हूँ तुझे   याद  कर  के

तुमसे प्यार करते हैं बेहिसाब करते हैं

Image
हम तो जो भी करतें हैं लाजवाब करते हैं तुमसे प्यार करते हैं बेहिसाब करते हैं अब कोई मन्जर आंख को नहीं भाता बेहतरीन ख्वाबों का इन्तिखाब करते हैं जिन्दगी को जीने के सीखिए हुनर उनसे जो हर एक लम्हे को कामयाब करते हैं ये गुलाब सा चेहरा, यूँ ही तो नहीं खिलता मुस्कुराहटों को हम जैसे दस्तयाब करते हैं तुमको देखकर  , बात ये समझ आई लोग अपनी नीन्दों को क्यों खराब करते हैं

आंखों से दरीया बहता है

Image
इश्क़ का कैसा रोग लगा है मैं खुद से बातें करता हूँ आपके आने से पहले यह  दिल का नगर कितना सूना था शब सन्नाटा, तेरा तसव्वुर याद नहीं मैं कब सोया हूँ क्यों न रोता मिलकर उससे वो भी तो मिलकर रोया था कल शब जिससे आंख हुई नम  तेरी याद का इक झोंका है जिसका सच होना था मुश्किल मैंने ऐसा ख्वाब बुना है कैसा हाल फुरकत में उनकी आंखों से दरीया बहता है

तेरा नाम भी सजदे से लिए

Image
नाम भी तेरा अकीदत से लिए जाता हूँ हर कदम पर तुझे सजदे किए जाता हूँ कोई दुनिया में मेरा मूनिसो गमख्वार नहीं तेरी रहमत के सहारे पे जिए जाता हूँ तेरे औसाफ में इक वस्फ खता पोशीदा है इस भरोसे पर खताएँ किए जाता हूँ आजमाइश का महल हो कि मसर्रत का मकाम सजदा-ए- शुक्र बहरहाल किए जाता हूँ

तन्हा तन्हा

शहर में किसका चर्चा है कौन यहाँ से गुजरा है उसकी हंसी तुम क्या समझो वह जो पहरो रोया है चढते दिन के मतवाले ढलता सूरज देखा है रात को देखें क्या गुजरे बाहर सूना सूना है हम भीड़ में होकर भी जैसे तन्हा तन्हा हैं

चान्दनी के मौसम में

चान्दनी के मौसम में जिन्दगी के रास्ते में प्यार के दरख्तों के दिल फरेब से साए रींगते नजर आए कशमकश के आलम में खुद बखुद झुकीं पलकें सारे बन गए जंजीर धडकने पुकार उठी जिस्म का अधुरापन मौत की अलामत है

उसकी गली में

आंखें हैं हैरान उस गली में है क्या अजब की शान उस गली में है बात में जान से गुजर जाना कितना आसान उस गली में है और एक बार मुझको जाने दो सारा सामान उस गली में है क्या खबर इन महल नशीनो को अपनी जो आन उस गली में है वही दीवारों दर, वह मेरा घर वही दलान उस गली में है मैं जो काफिर हूँ उस गली बाहर मेरा इमान उस गली में है उस गली पर हूँ जान से कुरबान मेरी पहचान उस गली में है

गुलज़ार

Image
हाथ छूटे भी तो रिश्ते नही  छोडा़ करते वक्त की शाख से लम्हे नहीं तोडा करते जिसकी आवाज में सिलवट, निगाहों में शिकन ऐसी तस्वीर के टुकड़े नहीं जोडा  करते लग के साहिल से जो बहता है उसे बहने दो ऐसे दरिया का रुख नहीं मोड़ा करते जागने पर भी आंख से नहीं गिरती किरण इस तरह ख्वाबों से आंखें नहीं फोडा़ करते शहद जीने का मिला करता है थोड़ा थोड़ा जाने वालों के लिए दिल नहीं थोड़ा  करते जा के हसार से मारो कि आवाज तो हो खस्ता दीवारों से माथा नहीं फोडा़ करते

कभी ख्वाबों में मिलेंगे

सितम तो यह है कि जालिम सुखन शनास न था वह एक शख्स जो शाइर बना गया मुझको अबके हम बिछड़े तो शायद कभी ख्वाबों में मिलें जैसे सूखे हुए कुछ फूल किताबों में मिलें मैं खुदा  हूँ  न  मेरा इश्क़ फरिश्तों जैसा दोनों इन्सान हैं तो क्यों इतने हिजाबों में मिलें ढूंढ उजड़े हुए लोगों में वफ़ा के मोती यह खजाने तुझे  मुमकिन है खराबों में मिलें

अहमद फराज़

Image
रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ आ फिर से मुझे छोड़ जाने के लिए आ किस किस को बताएंगे जुदाई का सबब हम तू मुझसे खफा है तो जमाने के लिए आ पहले से मरासिम न सही फिर भी कभी तो रस्मों रहे दुनिया ही निभाने के लिए आ

इक तू नहीं

रंग सब हैं साथ इक तेरा नहीं देखिए तो जिंदगी में क्या नही एक सपना सी गुजर रहा है हयात आंखें खुलती है और कुछ होता भी नहीं है क्या कयामत टूट जाती शहर पर अगर वो मुझसे जुदा होती नहीं सोचिए इन्सान की तकदीर पर सोचने से आदमी मरता नहीं💔💔

तुम ही तुम

अशआर मेरे यूँ तो जमाने के लिए है कुछ शेअर फकत उनको सुनाने के लिए है अब यह भी नहीं ठीक कि हर दर्द मिटा दें कुछ दर्द कलेजे को लगाने के लिए है आंखों में जो भर लोगों तो कांटों से चुभेंगे यह ख्वाब तो पलकों पर सजाने के लिए है देखूँ जो तेरे हाथ तो लगता है तेरे हाथ मन्दिर में फकत दीप जलाने के लिए है

चाहत

कोई कहानी नहीं कोई कविता नहीं कुछ तुम पर लिख सकूँ वो रचयिता नहीं मेरा साया हो तुम मेरी रचना हो तुम मेरी छाया हो तुम कैसे चित्रित करुं मैं छवि तुम्हारी तुलिका में सागर समाया है कभी चाहत है बनूँ मैं वो भाग्यशाली किनारा🌊 मिलने जिसे लहरें आती हैं दुबारा

गजल

वह जो अपनी जुबान खोले हैं उसके लहजे में इश्क़ बोले है इतनी नर्मी है उसकी बातों में जैसे लफ़्ज़ों से फूल तोले है देख ले जो भी एक बार उसे दिल ही दिल में उसी का होले है कितनी प्यारी है गुफ्तगू उसकी जैसे दिल की गिरह खोलें है ऐसा नशा है उसकी आँखों में नीन्द बिस्तर बिछा कर सोले है

गमे आशिकी

तेरे हर तीर को इस दिल में सजाया मैंने तेरी नफरत को भी सीने से लगाया मैंने तेरे होन्टों पे तबस्सुम रहे कायम हर दम अपनी हस्ती को इसी गम में मिटाया मैंने मेरी चाहत कभी रुस्वा नहीं होने पाए  इसी कारन हसीं जज्बों को दबाया मैंने  तेरी राहों में उजालों के लिए सारी उम्र अपनी आँखों के चरागों को जलाया मैंने तेरी दुनिया रहे आबाद सदा फूलों से अपनी तकदीर को कान्टों से सजाया मैंने

फैसला कर भी नहीं जाता

कुर्बत भी दिल से उतर नहीं जाता वह सख्श फैसला कर भी नहीं जाता आंखें भी है कि खाली नहीं रहती ं लहू से और जख्मे जुदाई है कि भर भी नहीं जाता हम दोहरी अजीयत के गिरफ्तार मुसाफिर पांव भी है शल, शौके सफर भी नहीं जाता दिल को तेरी चाहत पे भरोसा भी बहुत है और तुझसे बिछड़ कर जाने का डर भी नहीं जाता पागल हुए जाते हैं दिल के कैदी, इतनी खुशी से कोई मर भी नहीं जाता

सिर्फ और सिर्फ तेरा ख्याल

कुछ तो हवा भी सर्द थी, कुछ तो तेरा ख्याल भी दिल को खुशी के साथ साथ, होता रहा मलाल भी बात वो आधी रात की, रात वो पुरे चांद की चान्द भी ऐन चैत का, उस पर तेरा जमाल भी सबसे नजर बचाकर वह मुझको कुछ ऐसे देखा एक दफा तो रुक गई, सांसें गर्दिशें हाल भी मेरी तलब था एक शख्स वह जो नहीं मिला तो फिर हाथ दुआ से यूँ गिरा, भूल गया सवाल भी उसके ही बाजुओं में और उसकों ही सोचते रहें जिस्म की ख्वाहिश पे थे रुह के और हाल भी

दिल के फसाने

इतना मरते हैं तेरी जात पर हम जान दे दें जरा सी बात पर हम आजकल गम का बोझ काफी है वरना हंसते थे बात-बात पर हम मौत इक रोज़ सबको आनी है बोझ रखते हैं क्यों हयात पर हम ये मरना भी क्या मरना है तू जो जहर दें तो मौत को भी महबूब बना लें हम कुछ ना कहते अब चुप ही रहते तेरी खन्जरे अतल्लुकात पर हम