आंखों से दरीया बहता है

इश्क़ का कैसा रोग लगा है
मैं खुद से बातें करता हूँ

आपके आने से पहले यह 
दिल का नगर कितना सूना था

शब सन्नाटा, तेरा तसव्वुर
याद नहीं मैं कब सोया हूँ

क्यों न रोता मिलकर उससे
वो भी तो मिलकर रोया था

कल शब जिससे आंख हुई नम 
तेरी याद का इक झोंका है

जिसका सच होना था मुश्किल
मैंने ऐसा ख्वाब बुना है

कैसा हाल फुरकत में उनकी
आंखों से दरीया बहता है


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