रुसवा उसके नाम पे होने चली
हर खुशी की बात पर रोने चली
रख कर सर पत्थर पे मैं सोने चली
दे दिया क्यों मैंने उसको अपना दिल
जान भी उसके लिए खोने चली
दर्द ऐसा है कि जाता ही नहीं
आंसूओ से जख्म को धोने धोने चली
तोड़ भी नहीं सकती नहीं हूँ जिसका फल
ऐसे पौधों को मैं क्यों बोने चली
जाने क्या देखा है उसमें ऐ रहगुज़र
रुसवा उसके नाम पर होने चली
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