जख्म लाखों हैं और दिल अकेला
अर्श पर जैसे तारे बहुत हैं
मेरे दिल शरारे बहुत हैं
जख्म लाखों हैं और दिल अकेला
जैसे इक चान्द तारे बहुत हैं
आंसुओं से सजी हैं दुकानें
शहर में गम के मारे बहुत हैं
ये अजब महफिले दोस्तां है
इसमें दुश्मन हमारे बहुत हैं
उनको भी जीतने की हवस थी
हम भी दानिस्ता हारे बहुत हैं
उंगलियों पर मैं कैसे गिनाऊँ
मुझपे अहसां तुम्हारे बहुत हैं
साथ कोई देता नहीं है
और बजाहिर सहारे बहुत हैं
दो बदन चान्दनी रंग खुशबू
सोचिए इस्तिआरे बहुत हैं
हम सरापा खुलूसो वफ़ा हैं
फिर भी दुश्मन हमारे बहुत हैं
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