अहमद फराज़

रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ जाने के लिए आ

किस किस को बताएंगे जुदाई का सबब हम
तू मुझसे खफा है तो जमाने के लिए आ

पहले से मरासिम न सही फिर भी कभी तो
रस्मों रहे दुनिया ही निभाने के लिए आ

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