दिल के फसाने

इतना मरते हैं तेरी जात पर हम
जान दे दें जरा सी बात पर हम

आजकल गम का बोझ काफी है
वरना हंसते थे बात-बात पर हम

मौत इक रोज़ सबको आनी है
बोझ रखते हैं क्यों हयात पर हम

ये मरना भी क्या मरना है
तू जो जहर दें तो मौत को भी महबूब बना लें हम

कुछ ना कहते अब चुप ही रहते
तेरी खन्जरे अतल्लुकात पर हम

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