गजल

वह जो अपनी जुबान खोले हैं
उसके लहजे में इश्क़ बोले है

इतनी नर्मी है उसकी बातों में
जैसे लफ़्ज़ों से फूल तोले है

देख ले जो भी एक बार उसे
दिल ही दिल में उसी का होले है

कितनी प्यारी है गुफ्तगू उसकी
जैसे दिल की गिरह खोलें है

ऐसा नशा है उसकी आँखों में
नीन्द बिस्तर बिछा कर सोले है

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