आंखों से

तू हर्फे हम्द को ऐसे संवार आंखों से
जहाने हम्द में आए बहार आंखों से

दरे खुदा पे नजर ऐसे जज्ब में आए
लिखूँ मैं हम्द का इक शाकाहार आंखों में

मैं रब तेरे लिए लिखुँ तमाम हम्द तिरी
तेरे सिफात का क्या हो शुमार आंखों में

लबों पे आए दुआ मुस्तजाब हो जाए
तू रब को इश्क़ में ऐसे पुकार आंखों से

जो अश्क हो वह उन्हें हम्द में शुमार करें
बहें जो रब की मुहब्बत शुआर आंखों से

तमाम उम्र खुदा तेरे जिक्र में गुजरे
उतर न पाए ये तेरा खुमार आंखों से

किसी भी वक्त में रब को न भूलने पाए
तू उसको कल्ब में ऐसे उतार आंखों से

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