राहिल फरीदी
मुद्दतों बाद पढके उसका खत
हो गया आंसुओ से गीला खत
जाके परदेश भूल मत जाना
मुझको ऐ दोस्त लिखते रहना खत
इसको पढते ही आंख भर गई
आज तुने ये कैसा लिखा खत
बाद में पढ़ने के लिए खोला
पहले तो देर तक निहारा खत
उसने तोहफा ये मांगा मुझसे है
तुम मुझे रोज लिखना खत
भेजता है मेरे पते पर कौन
दोस्तों रोज एक सादा खत
दिल परीशां है सुबह से मेरा
क्यों नहीं आज उसका आया खत
जिसमें तुमने गुलाब भेजा था
आज तक है वो महका महका खत
मुद्दतों बाद याद आया मैं
मुद्दतों बाद उसने भेजा खत
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