कभी ख्वाबों में मिलेंगे
सितम तो यह है कि जालिम सुखन शनास न था
वह एक शख्स जो शाइर बना गया मुझको
अबके हम बिछड़े तो शायद कभी ख्वाबों में मिलें
जैसे सूखे हुए कुछ फूल किताबों में मिलें
मैं खुदा हूँ न मेरा इश्क़ फरिश्तों जैसा
दोनों इन्सान हैं तो क्यों इतने हिजाबों में मिलें
ढूंढ उजड़े हुए लोगों में वफ़ा के मोती
यह खजाने तुझे मुमकिन है खराबों में मिलें
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