कुछ तो हवा भी सर्द थी, कुछ तो तेरा ख्याल भी दिल को खुशी के साथ साथ, होता रहा मलाल भी बात वो आधी रात की, रात वो पुरे चांद की चान्द भी ऐन चैत का, उस पर तेरा जमाल भी सबसे नजर बचाकर वह मुझको कुछ ऐसे देखा एक दफा तो रुक गई, सांसें गर्दिशें हाल भी मेरी तलब था एक शख्स वह जो नहीं मिला तो फिर हाथ दुआ से यूँ गिरा, भूल गया सवाल भी उसके ही बाजुओं में और उसकों ही सोचते रहें जिस्म की ख्वाहिश पे थे रुह के और हाल भी